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जेन-दर्शन
इस प्रकार जब प्रत्येक पदार्थ में इन दोनों धर्मों के रहने में कोई विरोध नहीं है तो फिर शेष पांचों धर्मों के रहने में भी कोई विरोध नहीं हो सकता। और इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ में अस्तित्व 'आदि सातों धर्म विना किसी विरोध के सतत बने रहते हैं । इसी प्रकार इन अस्तित्व नास्तित्व धर्म के समान एकत्व अनेकत्व मूर्तत्व अमूर्तत्व आदि समस्त धर्म समझ लेने चाहिये।
द्रव्य का लक्षण
द्रव्य का लक्षण सत् है । सत् का अर्थ सत्ता है । जो जो द्रव्य हैं उनकी सत्ता अवश्य है, जो द्रव्य नहीं हैं उनकी सत्ता भी नहीं है। तथा जिन जिनकी सत्ता है वे द्रव्य अवश्य हैं। जो सत्ता रूप नहीं हैं अथवा जिनकी सत्ता नहीं है वे कोई द्रव्य नहीं हैं। इसलिये द्रव्य का लक्षण सत् वा सत्ता है ।
जिस प्रकार द्रव्यका लक्षण सत् है उसी प्रकार सत् का लक्षण उत्पाद व्यय ध्रौव्ययता है । अर्थात् जिनका उत्पाद हो वा उत्पन्न होते रहते हों जिनका व्यय वा नाश होता रहता हो और जो ध्र व रूप वा ज्यों के त्यों बने रहते हों उनको सत्' कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ में प्रत्येक समय में उत्पाद व्यय ध्राव्य ये तीनों अवश्य होते हैं । जैसे एक मिट्टी का घडा फूट जाता है। जिस समय में वह घडा-फूटा है। उसी समय में उसके टुकडे हो जाते हैं अर्थात् घडे का नाश और टुकडों का उत्पाद दोनों एक साथ होते हैं तथा उस घडे की मिट्टी जैसी घडे में थी सी ही टुकडों