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जैन-दर्शन
पदार्थों को 'यह घट नहीं हैं। ऐसा नहीं कह सकते तव यह भी घट है, वह भी घट है ऐसा ही कहना पडेगा। इस प्रकार घट में नास्तित्व का अभाव मानने से समस्त पदार्थ घट रूप ही मानने पडंगे। परन्तु ऐसा होना असंभव है इसलिये नास्तित्व धर्म का न मानना भी असंभव है।
इसी प्रकार यदि केवल नास्तित्व धर्मको ही मानले, अस्तित्व धर्मको न मानें तो 'घट नहीं है। यही वाक्य माना जायगा। ऐसी अवस्था में 'घट नहीं है। इस ज्ञानको उत्पन्न करने वाला भी नहीं बन सकता। क्योंकि केवल नास्तित्व धर्मको मानने वाले किसी भी पदार्थ में अस्तित्व धर्म नहीं मान सकते । फिर भला 'घट नहीं है' इस वाक्य का भी अस्तित्व कैसे माना जा सकता है ? तथा 'घट नहीं है' इस वाक्य के अस्तित्व को माने बिना न अपने पक्ष की सिद्धि हो सकती है और न दूसरे का निराकरण हो सकता है । इसलिये केवल नास्तित्व धर्म को मानना भी किसी प्रकार नहीं
वन सकता।
इसलिये मानना चाहिये प्रत्येक पदार्थ कथंचित् सत् रूप है, कथंचित् असत् रूप है, कथंचित् उभय रूप है और कथंचित् अवक्तव्य है। अपने अपने द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा से प्रत्येक पदार्थे सत् रूप है, पर पदार्थों के द्रव्य क्षेत्र काल भावकी की अपेक्षा से असत् रूप है । घट में रहने वाले द्रव्य क्षेत्र कालभांव को अपेक्षा से घट सत् रूप है और पट में रहने वाले द्रव्य क्षेत्र