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जेन-दर्शन भाग पाता है उतने में भी अनंतानंत जीव राशि रहती है। इस हिसाब से संसार में जीव राशि इतनी भरी हुई है कि यह कभी समाप्त नहीं हो सकता। यह बात नीचे लिखे उदाहरण से समझ लेना चाहिये । यह सब कोई मानता है कि श्राकाश अनंत है और वह चारों दिशायों की ओर अनंत है। यदि हम किसी एक दिशा की ओर अत्यंत शीघ्र गति से गमन करें, बिजली के समान शीघ्र गति से चलने वाली किसी सवारी पर चल तो क्या उस दिशा का अंत कभी था सकता है। इस प्रकार यदि हम अनंतानंत काल तक चले चलें तब भी क्या उसका अंत पा सकता है ? कभी नहीं । यदि मान जिया जाय कि उसका अंत या जाता है तो फिर यह प्रश्न सहज उठता है कि उसके प्रागे क्या है ? यदि उसके आगे कुछ नहीं है तो फिर मानना पड़ेगा कि उसके श्रागे भी आकाश है । इस प्रकार जो आकाश हम पीछे छोडते जाते हैं वह घटता जाता है तथापि उसका अंत कभी नहीं पा सकता। इसी प्रकार संसारी जीव राशि में से मुक्त होते हुए भी तथा उतने जीत्र घटते हुए भी संसारी जीव राशिका अंत कभी नहीं होता है।
गुणस्थान
जिस प्रकार मकान पर चढ़ने के लिये सीढियां होती हैं उसी प्रकार मोक्ष महल में पहुँचने के लिये चौदह गुणस्थान बतलाये हैं । गुणों के स्थानों को गुणस्थान कहते हैं। तथा वे