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________________ [ १७: अनशन कोटाकोटी सागर है । और श्रायु की तेनीस सागर है। वेदनीय कर्म की जयन्य स्थिति चाहते है नाम गोन की जघन्य स्थिति पाठ मुहूर्त है और शेष कर्मो की जयन्य स्थिति अन्तर्मु है । यह जघन्य और स्थिति है। अनेक मे है ! INV113 अनुभागवन्ध कर्म जो अपना फल देते है उसको अनुभाग कहते है जिस समय कर्मों का बहोता है उसी समय उन कमों में स्थिनिबन्ध पढ जाता है और उसी समय फल देने की शक्ति हो जाती है | उस शक्ति को ही अनुभागवन्य कहते हैं। यह श्रनुभागबन्ध भी कपायों से होता है । जैसे कपाय होते हैं वैसे हो उनमें फल देने की शक्ति पट जाती है। तीव्र कपयों ने तो पल मिलता है और नन्द कपायों से मन्द्र फल मिलता है। इस प्रकार इन कर्मों में जो फल देने की शक्ति पट जाती है उससे अनुभाग बन्ध कहते हैं । प्रदेशबन्ध यह बात पहले बता चुके हैं कि कर्मों का प्रात्र और न्य प्रत्येक समय में होता रहता है तथा प्रत्येक समय में श्रनन्तानन्त वर्गणा श्राती रहती हैं । वे सब वर्गणाएं लाके प्रत्येक प्रदेश में मिलकर एक रूप हो जाती हैं। इस प्रकार प्रत्येक समय में अनन्तानन्त प्रदेश आते रहते हैं । इसीको प्रदेशबन्ध कहते हैं ।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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