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जैनन्दशन निकलकर जहां केवली भगवान होते हैं यहां तक जाना है इसके साथ श्रात्मा के प्रदेश भी जाते हैं । तथा भगवान के दर्शन करने मात्र से उन मुनियों के हृदय की शंका दूर हो जाती है और फिर वह शरीर लौटकर उसी शरीर में समा जाना है। यह मय काम धंतर्मुहर्त में हो जाता है।
तेजस-जिसके उदय से शरीर में तेज बना रहता है।
फार्माणकों के समुदायको कहते हैं। इसके उदय से विग्रह गति में भी गमन और कमेका बंध होता रहता है।
श्रांगोपांग-जिसके उदयसे शरीर के अंग और उशंग बनते हो। इसके तीन भेद हैं। श्रीदारिक, वैशियिक और श्राहारक।
औदारिक अंगोपांग जिसके उदय से प्रौदारिक शरीर के अंग-उपांग बनते हैं।
वैफियिक श्रांगोपांग-जिसके उदयसे मियिक शरीर के अंग उपांग बनते हों।
श्राहारक प्रांगोपांग-जसके उदय से प्राहारफ शरीर के धंग उपांग बनते हों।
निर्माण-जिस कर्म के उदय से भंग उपांग इन्द्रियां आदि अपने अपने स्थान पर और अपने अपने प्रमाण से बने । इनके दो भेद है:-स्थाननिर्माण प्रमाण, निर्माण ।