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जैन-दर्शन
११६] सामाधिक किसी नियत समय तक पांचों पापों को पूर्णरूपसे त्याग कर देना सामायिक है । यह सामायिक प्रातःकाल-मध्याह्नकाल और सायंकाल तीनों समय किया जाता है । साधारण गृहस्थ श्रावकों को प्रातःकाल और सायंकाल तो अवश्य ही करना चाहिये । सामाचिक खड़े वा वैठकर दोनों प्रकार से किया जाता है । यह सामायिक उपद्रव रहित किसी एकांत स्थानमें वा जिनालयमें वा गांवके बाहर करना चाहिये । सबसे पहले प्रत्येक दिशामें तीन तीन अ वर्त और एक एक नमस्कार करना चाहिये फिर पंच परमेष्ठी का ध्यान वा जप करना चाहिये । बारह अनुप्रेक्षाओं का चितवन करना चाहिये और अपने मनको संकुचित कर पंच परमेष्ठी के गुणों में लगाना चाहिये । एक बारके सामायिक का समय, उत्कृष्ट छह घडी, मध्यमः चार घडी.और जघन्य दो घडी है । सामायिक करते समय यद्यपि गृहस्थ. वस्त्र सहित होता है तथापि चदि वह उतने समय समस्त पापों का त्याग कर देता है और अपने मनको आत्मा वा पंच परमेष्ठी के गुणों के चितवनमें लगा देता है तो वह मुनि के समान माना जाता है। क्योंकि उस समय आई हुई परोपहों का भी सहनः करता है
और धर्म्यध्यान का चितवनः करता है। उस समय मन वचन कायको किसी अशुभ कार्यों में लगाना, सामायिक के पाठ को वा क्रियाओं को भूल जाना और सामायिक का अनादर करना इस व्रतके दोप हैं। सामायिक में ये दोप कभी नहीं लगाने चाहिये। .