SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ।। श्रीः ।। चीतरागाय नमः जैन--दर्शन लेखक धर्मरत्न पं० श्री लालारामजी शास्त्री मैनपुरी (उ. प्र.) १-जिन का स्वरूप भगवान् जिनेन्द्र देवको जिन कहते हैं। जो आत्मा ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय कर्मों का सर्वथा नाश कर देता है उसको जिन या जिनेन्द्र कहते हैं। ज्ञानावरण कर्म के नाश हो जाने से वह सर्वज्ञ हो जाता है । दर्शनावरण कर्स के नाश होजाने से वह सर्व-दर्शी हो जाता है । मोहनीय कर्म के नाश हो जाने से वह भूख, प्यास, जन्म, मरण, बुढ़ापा, भय, राग, द्वेप, मोह, चिंता, पसीना, मद, आश्चर्य, अरति, खेद, रोग, शोक, निद्रा आदि समस्त दोषों से रहित होकर अपने आत्मा में लीन हो जाता है और अन्तराय कर्मके नाश हो जाने से वह अनंत शक्तिमान् हो जाता है। ऐसे सर्वज्ञ वीतराग आत्माको जिन कहते हैं। यह आत्मा इन कर्मोंका नाश किस प्रकार करता है या प्रत्येक प्राणी इन
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy