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सद्दर्शनों से शीघ्र ही मिटता हृदयका खेद है। वह शैलपति सचमुच अहो क्या शान्तिका आगार है ?
या पूर्वजों की कीर्तिका अविचल-वृहद्-आधार है। नित पूजने लायक हृदयसे शैलका पाषाण है,
क्या लोहको पारसमणी करती न हेय समान है। पाया वहांसे पूज्य ऋषियों ने परम निर्वाणको, आश्चर्य अपने साथ ही पावन किया सव स्थानको,
श्रीकैलाश। श्रीआदि विभु निर्वाणभू विश्रुत विपुल कैलाश है, स्वर्गीय शोभाका अहो! जो पूर्णतः आवास है। बन दृश्य अति रमणीक जिसके, इन्द्रका मन लोभते, ऐसे हमारे तीर्थ अनुपम लोक भरमें शोभते ।
श्रीगिरनार। श्रीनेमि प्रभु पद-स्पर्शसे पावन हुआ गिरनार है,
सविनय सतत उस भूमिको भी वन्दना शतवार है। श्रीकृष्ण सुत प्रद्युम्न, शंभू. वीरवर अनिरुद्ध हैं, इत्यादि अगणित मुनि वहांसे हो गयेप्रभु सिद्ध हैं।
चम्पापुरी और पावापुरी। हैं पुण्यदात्री नगरियां चम्पापुरी पावापुरी,