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निज ग्रन्थके प्रारम्भमें वे वाक्य लिखते थे यही. यस शब्द एकत्रित किये कुछ भी किया हमने नहीं।
स्तोत्र। कल्याणमन्दिरकी कहो महिमा छिपी क्याआपसे ? प्रगटित हुई थी पार्श्व प्रतिमा स्तोत्र सत्य प्रनापसे । भक्तामरादिक तेजको सब लोग अबतक जानते, हैं मंत्र इसमें बात यह विद्वान सब ही मानते । कैसे स्वयंभू स्तोत्रका गुणगान नर मुखसे करे ?
उसकी कथा इस विश्वमें आश्चर्यको पैदा करे। वे स्तोत्र क्या वस मंत्र थेनिजकार्य होताथासमी,
देतेन थे जिसके पठनसे त्रास व्यन्तर भी कभी। श्रीवादिराज प्रणीत 'एकीभाव' भक्तीमय अहा!
आचार्यका जिससे कलेवर कोड़ सबजाना रहा। यदि भक्ति भावोंसे करें हम देवकी आराधना, होनी सहज ही शोध पूरी चित्तकी शुभकामना ।
स्तुतियें। संकटहरण विन्नी लबालब भक्ति भावोंसे भरी, मानों ननोहर भूपोंसे युक्त ही हो सुन्दन ।