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थी चन्द्र१, रवि प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति यहां,
थी द्वीप-सागर २ अतिगहन व्याख्या सुप्रज्ञप्ति यहां माया३ गता जल थलगता इत्यादि विद्यायें रहीं,
दुर्भाग्यसे अब ग्रन्थ उनके प्राप्त हा! होते नहीं। वे गूढ मनकी बात सब सद् भांति बतलाते रहे,
वे भूत और भविष्यको प्रत्यक्ष जतलाते रहे। सब वस्तुयें दिखती रहीं उनके अलौकिक ज्ञानमें, अव आन सकना ध्यान भी उनका किसीके ध्यानमें
हमारे शास्त्र। सवही विषयके शास्त्र थे शोभित यहां भंडारमें,
नहिं अन्य उनकी जोड़के थे ग्रन्थ इस संसारमें। निज २ विषयमें एकसे बढ़कर यहाँपर ग्रन्थ थे, पढ़कर उन्हें मानव सदाहो देखते निज पन्य थे।
१ चन्द्र प्रज्ञनिमें चन्द्रमा सम्वन्धी सूर्य प्रज्ञप्तिमें सूर्य सम्वन्धी विमान, पूर्ण गृहण, अर्ध गृहणका वर्णन है।
र द्वीप सागर प्रतिमें असंख्यान द्वीप और समुद्रीका वर्णन है। ३ माया गामें इन्द्रजाल सम्वन्धी वर्णन है। ४जल गठामें अलगमन आदिका वर्णन है।
(गोमनार जीवकाण्ड)