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मेरे दो शुखद
पाठक गण। आपके सामने यह जैन भारतो उपस्थित है मैने इसे सुन्दर और सरल बनाने की चेष्टा की है। इसमे मुझे कहा तक सफलता प्राप्त हुई है इसका निर्णय पाठकों पर छोड़ता हूं।
मित्रवर पंडित सिद्धसेनजी साहित्य रत्न एक बार कलोल (गुजरात) उपदेशार्थ पधारे थे उन्होंने मेरा बनाया हुआ प्रद्युम्न चरित देखा । उस समय आपने कहा कि कोई ऐसा ग्रन्थ बनाइये जिससे हम भूत भविष्य और वर्तमान को सामाजिक परिस्थिति को जान सके, भूत खण्ड आप लिखिये। वर्तमान तथा भविष्य खण्ड मैं पूरा करूंगा। इधर मैंने भूत खण्ड पूरा किया परन्तु वे अनवकाश के कारण वर्तमान खण्ड को प्रारम्भ भी नहीं कर सके वाद मे उन्होने मुझे लिखा कि आपही इस कार्य को पूरा कीजिये
और साथही विषयों की सूची बनाकर भेज दी तदनुसार कार्य मुझे ही करना पड़ा, वर्तमान पुस्तक के निमित्त उक्त पण्डितजी अवश्य ही धन्यवाद के पात्र हैं। __इस पुस्तक के प्रकाशकजीने अनेक कठिनाइयो का सामना करते हुये भी इसे प्रकाशित करने का कष्ट उठाया है अतएव वे भी धन्यवाद के योग्य हैं।
विनीत :गुणभद्र जैन