________________
..
.
पश्चात् उनको स्वर्गमें देवेशकी भूति१ मिली। आलस्यमें जीवन विताना भूलकर भाया नहीं,
संसारका दुर्भाव उनके चित्तमें आया नहीं। उनके सरल व्यवहारमें लवलेश भी माया नहीं, निज सत्य ही जगमें रहे चाहे रहे काया नहीं। आहार करके मिष्ट, चादर तानकर सोते न थे, वे एक क्षण भी व्यर्थमें अपना कभी खोते नथे। वे सह न सकते थे जगतमें धर्मके अपमानको,
शुभकार्य हित वे तुच्छ गिनते थे सदा निज प्राणको उन पूर्व पुरुषोंसे सदा माता कहाई सुतवती, घस, लोकके कल्याणमें तत्पर रही उनकी मती । वे विश्वके सेवक रहे, पर विश्व प्रभु था मानता, कोई न था ऐसा मनुज उनको न जो पहिचानता। अपकारियोंका भी अहो! करते प्रथम उपकार थे, निज शत्रुके भी दुःखको करते मुदित संहार थे। लड़ते रहे मध्याह्नमें वे तो कठिन संग्राममें, मिलते रहे संध्या समय सप्रेम रिपुसे धाममें । था धैर्य उनको आपदामें अभ्युदयमें थी क्षमा, यो देखकर भीषण समर उत्साह नहिं उनका कमा । १ विभूति।
d