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________________ -> अहिंसा | सबही अहिंसा धर्मको कल्याणकारी मानते, लेकिन न उसके गूढ़ तत्त्वांको कभा पहिचानते । जैसा अहिंसा धर्मका लक्षण कहा इस धर्ममें, वैसा अलौकिक लेख क्या, मिलता किसी के कर्ममें ? यह धर्मके भी नामपर आज्ञा न देता घातकी, वधसे दुराशा मात्र है सर्वत्र अपने शात १ की । होते न हर्षित देवता भी जीव-जीवन त्यागसे, वे तो मुदित होते सदा, बहु भक्तिगुण अनुरागसे । समानता । नित शक्ति सत्ताकी अपेक्षा सर्व जीव समान हैं, निज आवरणको दूरकर होते मनुज भगवान् हैं । सर्वेश होनेकी सभीके अन्तरंगमें शक्ति है, अतिही कठिनतासे सदा वह शक्ति होती व्यक्ति है सार्व धर्म | इस धर्मको तिर्यंच तक भी पाल सकते सर्वदा, सच पूछिये यह एकही जगमें सभीकी सम्पदा । १ कल्याण ।
SR No.010211
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunbhadra Jain
PublisherJinwani Pracharak Karyalaya Kolkatta
Publication Year1935
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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