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सत्कर्मको हम छोड़कर दुष्कर्ममें जथ पड़ गये, दुष्कर्मके ही गर्तमें तव अङ्ग सारे सड़ गये।
आदेश। संसारमें आके तुम्हें सत्कर्म करना चाहिये,
परकी व्यथा सप्रेम सादर शीघ्र हरना चाहिये। यह शुभ अशुभही कर्म तो रहता सदा है साथमें, परलोकमें जाता यही जाता न कुछ भी साथ में ।
प्रार्थना भगवान आदिनाथ। हेआदिप्रभुकरुणाकरो! करुणाकरो करुणाकरो!
भववेदना सत्वर हमारी नाथ अघ आके हरो। सर्वाङ्ग अतिशय जल रहा है घोर भवआतापसे, तुम हो दयालू इसलिये करते विनय हम आपसे।
श्री अजितनाथ । जो नर हृदय में आपके सद्गुण तनिक धारण करे,
कलिमल उसे अवलोक करके दूरसे अतिशयडरे। प्रभु आपकी दिव्यध्वनी करती जगन भरको सुखी, करके श्रवण घनगर्जना होतान क्या केकी सुखी।