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छात्रगण। छात्रो तुम्हीं पर धर्मकी उन्नति सदा निर्भर रही,
भूली नहीं उपकार अवतक भीतुम्हारा यह मही। होसाहसी अति स्वावलम्बी छात्रगण जिस देशमें, क्या नामको भी रह सकेगी मूर्खता उस देशमें ।
तुमहो हमारे देशकी अनुपम अतुल प्रिय सम्पदा,
उत्थान अव तुमही करो आशा हमारी सर्वदा। निज शक्तियोंको पुष्ट करनेके लिये ये दिनमिले, कंचन-सदृश यदि दिन तुम्हारे व्यर्थही जावेचले।
फिर हाथमें केवल तुम्हारे सोच ही रह जायगा,
कर अंजुलीगत नीरगत जीवन सहज वह जायगा। होती नहीं संसारमं शिक्षा इति श्री भी कभी, कोई मनुज आकाशका भी पार क्या पाता कभी।
की चनो मन पुस्तकोंक बुद्धिको विकसिन कगे,
यो गिरियो लोभसे याद जीयन मन करो। संमारमें नपकाल ना लक्ष्य नित माँग हो, कोमल हृदय मर्यग्रही दुर्भाय वर्जित स्वन्ध हो।