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अपव्यय। देखो अपव्ययका यहांपर रोग कैसा है अहा, धन तुच्छ कामोमें सदा पानी सहश जाता पहा । सौकी जगह हम चार सौ भी खर्च करते हैं वृथा, सत्कर्ममें तो द्रव्य देनेकी न करते हैं कथा ।
क्यों दूसरों से व्यर्थ व्यय थोड़ा यहां जावे किया,
जैसे उसे प्रभुने दिया वैसे हम भी तो दिया । यदि त्रुटि शोभा वहां थी तोयहां होगी नहीं, घस नामहित निज गेह भी सानन्द वेचेंगे सही।
मात्सर्य। 'अब तो हृदयमें ठसकरके भर लिया मात्सर्य है,
होता कहाँ हमको सहन परका विपुल ऐश्वर्य है। तत्पर सदा रहते अहो ! परको गिरानेके लिये, हैं दक्ष सब ही द्वषको दूना करानेके लिये।
स्वच्छन्दता। प्रतिदिन प्रगतिसे बढ़ रही है देख लो स्वच्छन्दता,
हम धार्मिक सत्कार्योंको कह रहे हैं अन्धता। कहते पुराणोंको गपोड़े बात कितने शोककी, करते अवज्ञा ईशकी नहिं भीति है परलोककी।