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सन्तान विक्रता प्रथम उसके लिये देखें कुआ,
क्या बालिकाका जन्म विक्रयके लिये भूपर हुआ। सन्तान विक्रता लनुज संसार भरमें नीच है, वह निद यी,राक्षस, नराधम, पाप रूपी कीच है।
३४० सम्पत्ति लिप्सासे सुताको जो मनुज दे वृद्धको, कोढ़ी,अपाहिज,नीच,लले दुर्गणी अतिऋद्धरको । इस लोकमें प्रत्यक्ष ही परिणाम मिलता है उन्हें, मरकर यहांसे शीघही यमधाम मिलता है उन्हें।
बाल-विवाह। कैसा भयंकर देखिये यह आज पाल विवाह है,
सन्तानको झट भस्म करनेके लिये यह दाह है। हम अर्धविकसित पुष्पकोहोकर अतिशय तोड़ते. असहाय एक गरीषपर क्यों भार जगका छोड़ते।
१ फन्यां यच्छति वृद्धाय, नीचाय धन लिम्सया। कुरूपाय, मुगोलाय, समेतो जायते नरः ।।
( महात्मा स्कन्द) --सम्पत्ति वाला।