________________
इक्कीस१ प्रतिदिन घट रहे हैं देख लो जैनी यहां, क्यों चल रही है कालकी हमपर कठिन छेनीयहां।
१७७ एक दिन संसारमें सर्वत्र थे हम ही हमी, पर आज सबसे भी अधिक होती हमारी ही कमी। सम्राट अकबरके समय हम एक कोटि रहे यहाँ वे धर्म-बन्धु छोड़ हमको हाय, आज गये कहाँ ?
१७८ हा, देखकर घटती विकट बहता हगोंसे नीर है, जिसके हृदय होती व्यथा होती उसीको पीर है। अस्तित्वक्या उठ जायगा अव सोचहोता है यही, क्या अन्य लोगोंकी तरह हमसे रहित होगी मही।
१६ भूगर्भ स्थित मूर्तियां अस्तित्व फिर बतलायेंगी,
था जैन धर्म कभी यहांपर वात ये प्रगटायेंगी। होंगे हमारे देव मन्दिर दूसरों के हाथमें, विचरा करेंगे हम कहींपर दूसरों के साथमें।
१ तीस वर्ष में जैन समाजके दो लाख भादमी कम हो गये।