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हम आत्म रक्षा कर सकें इतना न तनमें बल कहीं,
मुरदार चहरों पर तनिक भी वीरताकाजल नहीं। हम देख करके चोरको जगते हुये सो जायेंगे, हल्ला करेंगे जोरका सर्वस्व जब ले जायेंगे।
अन्यायियों के सामने हम कांपते हैं तूलसे,
सुकुमार अतिशय हो रहे देखो, सुकोमल फूलसे। अह, सहन सकते हैं कभी मध्याह्नके भी घामको, तांगे विना जाते नहीं दूकानसे भी धामको।
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फिर भी न लायेंगे यदि व्यायामको उपयोगमें.
आजन्म ही सड़ते रहेंगे हम भयंकर रोगरें । व्यायामशालाजातनिक इस देहकोसुगठित करो, सुख-शांतिके हित विश्वमें व्यायामको नियमितकरो
__ औषधालय । हैं औषधालय भी यहां उपचार करनेके लिये, जड़से न सत्यानाश कोई रोग जाते हैं किये।