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हा! हा! जरा सी बातसे व्यवहार होता बन्द है, जो मानवोंकी दृष्टि क्या पशु दृष्टिसे भी निन्ध है।
१४२ भूदेवपके भी हाथका आहार तुमने कर लिया,
मानों भयंकर घोर पापाचार तुमने कर लिया। वस, जोड़ कर दोनों करों को दण्ड लेना चाहिये, आजन्म, नहिं तो वन्धओं से दूर रहना चाहिये ।
यदि रातमें कुछ खालिया भागी हुये तुम पापके,
मन्दिर तुम्हारा बन्द.क्या प्रभु भी किसीके वापके। जबतक न मीठे मोदकों से पेट इनका भर सको, तबतक जिनालयमें न अपना एक पग भी धर सको
बहिष्कृत। जिनको निकाला धर्मसे उनकी कथा कहना हमें,
हा! हा वहिष्कृत बन्धुओं का कष्ट भी सहना हमें। उनका नहीं कुछ भी गया वे दूसरों में मिल गये. । मुरझे हुये पंकज-हृदय तत्काल उनके खिल गये।
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