________________
निज ठौरसे आश्रय बिना किंचित् न हिलसकते नहीं,
मोटर बिना दो चार पग भी वेन चल सकते कहीं। निज देह भी देखो किसीको हो रहा अति भार है, श्रीमान् लोगोंका यहां अब दास ही आधार है।
आसामियों पर वे कृपा करना कभी नहिं जानते,
वे स्वार्थ साधनकी कलायें सर्वथा पहिचानते । हा! एक रुपया दे सहज जबतक न दो लेंगे सही,, न्यायालयोंका पिण्ड भी तबतक न छोड़ेंगे कहीं।
देंगे न पाई एक भी श्रीमान् विद्या दानमें,
क्या बांधकर ले जायंगे सव सम्पदा श्मसानमें ? यदि जोर देकरके कहो उत्तर कुरा देंगे यही, श्रम संचिता यह सम्पदा हमको लुटाना है नहीं।
वे मार धक्के भिक्षुकोंको दूर करते द्वारसे, धर्मार्थ देना पाई भी जाना न उनने प्यारसे । लाखों उड़ा देंगे सहज ही व्यर्थ अपने नामको, रमणीक कृत्रिम वस्तुसे भरते रहेंगे धामको ।