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था। कलन्दर चार नियमो का पालन करते थे - 1. 'साधुता 2. शुद्धता 3. सत्यता और 4. दरिद्रता' । वे अहिंसा पर अखण्ड विश्वास करते थे । जैन धर्म का प्रसार अहिंसा, शान्ति, मैत्री और सयम का प्रसार था। इसलिये उस युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण-युग (Golden Age) कहा जाता है'।
(v) पुरातत्व विद्वान् पी० सी० राय चौधरी के अनुसार:
"यह धर्म (जैन धर्म) धीरे धीरे फैला, जिस प्रकार ईसाई धर्म का प्रचार यूरोप में धीरे धीरे हुआ। श्रेणिक, कुणिक, चन्द्रगुप्त, सम्प्रति, खारवेल तथा अन्य राजाओं ने जैन धर्म को अपनाया। वे शताब्द भारत के हिन्दू-शासन के वैभवपूर्ण युग थे, जिन युगो मे जैन-धर्म सा महान धर्म प्रसारित हुआ।"
(vi) भगवान महावीर ने समाज के जो नैतिक मूल्य स्थिर किये, उनमें दो बाते सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण
थी:
(अ) अनाक्रमण - सकल्पी हिंसा का त्याग (आ)इच्छा परिमाण - परिग्रह का समीकरण
'यह लोकतत्र या समाजवाद का प्रधान सूत्र है। वाराणसी संस्कृत विद्यालय के भूतपूर्व उपकुलपति श्री आदित्य नाथ झा ने इस तथ्य को इन शब्दो में व्यक्त किया है:___'भारतीय जीवन में प्रजा और चरित्र का समन्वय जैनो और बौद्धो की विशेष देन है । जैन दर्शन के अनुसार सत्यमार्ग परम्परा का प्रधानुसरण नही है, प्रत्युत तर्क और उपपत्तियो द्वारा सम्मत तथा बौद्धिक रूप से सतुलित दृष्टिकोण ही सत्य मार्ग है । इस दृष्टकोण की