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वाड़ा में मूलवस्तिका नामक जैन मदिर बनवाया जो अब भी विद्यमान
चालुक्य नरेश भीम प्रथम द्वारा जैनधर्म का विशेष प्रसार हुआ। उसके मत्रीविमल शाह ने आबू पर्वत पर आदिनाथ भगवान् (शृषभदेव) का वह जैन मदिर बनवाया जिसमे भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट दर्शन हुआ है। जिसकी सूक्ष्म चित्रकारी. बनावट की चतुराई तथा सू दरता जगत् विख्यात मानी गई है । यह आलीशान मदिर सन् 1013 मे सात वर्ष के भीतर बन कर तैयार हुमा । विमलशाह ने तेरह सुलतानो के छत्रो का अपहरण किया था और चद्रावती नगरी की नीव डाली थी। सच तो यह है:
__ 'कि उसी काल में महमूद गजनवी द्वारा विध्वन्स किये गये सोमनाथ मदिर का यह प्रत्युत्तर था।'
जैन मत्री विमलशाह ने यह लोकविख्यात कार्य सम्पन्न करके भारतीय स्थापत्य कला, भारतीय भवित एव भारतीय शक्ति का स्वच्छ अहिसक रूप उपस्थित किया था जो निर्भयता और शूरवीरता से परिपूर्ण था।
चालुक्य नरेश "सिद्धराज" और उसके उत्तराधिकारी "कुमार पाल' के समय मे जैन धर्म का और भी अधिक बल बढ़ा । कलिकाल सर्वज्ञ, प्रसिद्ध जैनाचार्य "हेमचद्र' के उपदेश से राजा कुमार पाल ने स्वय खुलकर जैन धर्म धारण किया और गुजरात की जैन सस्थाओ को खूब समृद्ध बनाया जिसके फलस्वरूप गुजरात प्रदेश सदा के लिये धर्मानुयायियो की सख्या तथा सस्थाओ की स म द्धि दृष्टि से ',जैन धर्म का एक सुदृढ़ केन्द्र बन गया ।
वर्तमान युग के महापुरुष महात्मा गाँधी जी पर अहिंसा का जो प्रभाव पड़ा उसका गुजरात के मूलकारण श्री मद रायचन्द्र भाई थे।