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जैन परम्परा में ५०० से अधिक विशिष्ट साहित्यकार ऋषि पुगव प्रतिभा संपन्न प्राचार्य रत्न हुए जिन्होने संस्कृत, प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, अपभ्रंश, तामिल, कर्नाटक आदि भाषाओं में १५००० के लगभग ग्रंथ लिखे जिनमें आत्मिक उत्थान और लोक कल्याण की भावना पद पद पर दृष्टिगोचर होती है ।
दर्शन, सिद्धान्त, काव्य, नाटक, पुराण, चरित्र, उपन्यास, कहानी 'चम्पू, स्तुति, भक्ति, मंत्र, तत्र, ज्योतिष, जीव विज्ञान, वैद्यक, चरित्र 'निर्माण, मूर्ति विज्ञान, भवन निर्माण, चित्र, रत्न परीक्षा, इतिहास, अष्टांग योग, नीति, मुनिधर्म, श्रावकधर्म, कविता, कला राजधर्म, पशुजगत, गणित और मानव जीवन को सुखी बनाने और जगत में सम्मानपूर्वक जीने की कला आदि विषयों पर भारत की प्रत्येक भाषा में साहित्य का निर्माण किया । ___इसके पश्चात् गृहस्थ विद्वानो भट्टारको, यतियों और उनके पडितों ने प्रान्तीय भाषाओ में हिन्दी, मराठी, गुजराती, बगला, उर्दू और विदेशी भाषा अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा में जैन ग्रन्थों की रचना की। जिनमे अधिकांश अनुवाद और अधिक संख्या में मौलिक ग्रन्थों की रचना हुई जिनके द्वारा जन साधारण का महान् उपकार हुआ।
भ० महावीर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी हुए । गौतम स्वामी, सुधर्म स्वामी और जम्बू स्वामी तीनो केवली हो निर्वाण को प्राप्त हुए।
प्रमुख प्राचार्यों के नाम १ गणधर सुधर्मा स्वामी २ प्राचार्य जम्बू स्वामी ३ प्राचार्य प्रभव स्वामी ४ आचार्य विष्णु कुमार