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अध्याय
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भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित "द्विविध धर्म"
धम्मे दुविहे पण्णत्ते, तजहा-अगार धम्मे चेव,
अरणगार धम्मे चेव" (ठाणांग सूत्रागम) १. अगार धर्म :
गृहस्थ में रहते हुए, तथा पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों को निभाते हुए मुक्ति मार्ग को साधना करना अगार धर्म है। इसे श्रावक धर्म भी कहते है । अनगार धर्म :
जो विशिष्ट साधक गृह त्यागकर साघु जीवन अंगीकार करते हैं, पूर्ण अहिंसा-सत्य-अस्तेय-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह की आराधना करते है उनका आचार अणगार (अनगार) धर्म कहलाता है ।
-साधु उपयुक्त 'व्रतो को पूर्ण रूप से पालन करता है ।
-श्रावक (गृहस्थ) उन व्रतों को आशिक रूप में पालन करता है।
व्रत क्या है ?
जीवन को सुघड़ बनाने वाली, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली मर्यादाएं नियम कहलाती हैं । जो मर्यादाएं सार्वभौम हैं, प्राणिमात्र के लिए हितकारी हैं और अपने लिए भी शुभ हैं उन्हें 'नियम या व्रत' कहा जाता है। जीवन में अशुभ में आने वाले दोषों