SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 5 भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित "द्विविध धर्म" धम्मे दुविहे पण्णत्ते, तजहा-अगार धम्मे चेव, अरणगार धम्मे चेव" (ठाणांग सूत्रागम) १. अगार धर्म : गृहस्थ में रहते हुए, तथा पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों को निभाते हुए मुक्ति मार्ग को साधना करना अगार धर्म है। इसे श्रावक धर्म भी कहते है । अनगार धर्म : जो विशिष्ट साधक गृह त्यागकर साघु जीवन अंगीकार करते हैं, पूर्ण अहिंसा-सत्य-अस्तेय-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह की आराधना करते है उनका आचार अणगार (अनगार) धर्म कहलाता है । -साधु उपयुक्त 'व्रतो को पूर्ण रूप से पालन करता है । -श्रावक (गृहस्थ) उन व्रतों को आशिक रूप में पालन करता है। व्रत क्या है ? जीवन को सुघड़ बनाने वाली, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली मर्यादाएं नियम कहलाती हैं । जो मर्यादाएं सार्वभौम हैं, प्राणिमात्र के लिए हितकारी हैं और अपने लिए भी शुभ हैं उन्हें 'नियम या व्रत' कहा जाता है। जीवन में अशुभ में आने वाले दोषों
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy