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कला के उदाहरण "निशीथ घृणि.. की "पाटन के संघवीगाडा के भन्डार में सुरक्षित ताडपत्रीय प्रति में मिलते हैं। यह प्रति उसकी प्रशस्ति अनुसार भृगुकच्छ (भड़ौच) में सोलंकी नरेश जयसिंह (1094 से 1133 ई.) के राज्यकाल में लिखी गई थी। इसमें सुन्दर चक्राकार प्राकृतियां बहुत हैं।
(3) सन् 1127 ई० में लिखित खम्भात के 'शान्तिनाथ जैन मन्दिर' में स्थित नगीनदास भन्डारी की "ज्ञातधर्म" सूत्र की ताडपत्रीय प्रति के पद्मासन महावीर तीर्थकर के आसपास चौरी वाहको सहित, तथा सरस्वती देवी का अभंग चित्र उल्लेखनीय है । देवी चतुर्भुज है ।
(4) बडौदा जनपद के अंतर्गत छाणी के जैनी भन्डार की "प्रोध निक्ति , की ताडपत्र पर बनी प्रति (सन् 1161) के चित्र विशेष महत्व के हैं। इनमे 16 विद्यादेवियो तथा अन्य देवियों और यक्षो के सुन्दर चित्र उपलब्ध हैं।
(5) सन् 1288 में लिखित सुबाहु कथादि "कथा संग्रह" की ताड़पत्र की प्रति मे 23 चित्र है जिनमें से अनेक अपनी विशेषता रखते है । एक मे भगवान् नेमिनाथ की वर यात्रा का सुन्दर चित्रण है । कन्या राजमती विवाह मन्डप में बैठी है, जिसके द्वार पर खडा हुआ मनुष्य हाथी पर बैठे नेमिनाथ का हाथ जोड़ कर स्वागत कर रहा है। नीचे की ओर म गाकृतियाँ बनी हैं। चित्र बलदेव मुनि के है । एक में वे एक वक्ष के नीचे मग सहित खडे हुए रथवाही से आहार ग्रहण कर रहे है।
रंगो का प्रयोग
सन् 1350-1450 ई० के बीच में ताडपत्रीय चित्रों में सौदर्य की दृष्टि से कुछ विशिष्टता देखी जाती है। प्राकति-अंकन अधिक सूक्ष्मतर व कौशल से हुआ है। प्राकृतियो मे विषय की दृष्टि से