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पर पूर्वोक्त लेख खुदा हुआ है । ऊपर पद्मासन जिन मूर्ति है और उसके दोनो प्रोर चद्र-सूर्य दिखाये गये है । लकुन्डी के इस जैन मन्दिर ने द्राविड वास्तु-शिल्प को बहुत प्रभावित किया है।
5. जिननाथपूर व हलेबीड.हायसल राजवश के काल में (13वीं शती) द्राविड़ कला में 'अलकरण रीति' में समुन्नति हुई । पाषाण पर कारीगरो की छैनी अधिक कौशल से चली है जिसके दर्शन हमे जिननाथपुर तथा हले बीड के जैन मन्दिरों में होते है।
'जिननाथपुर, श्रवण बेलगोल में एक मील उत्तर की ओर है। ग्राम का नाम ही बता रहा है कि यहाँ जैन मन्दिरों की प्रख्याति रही है । यहाँ का शान्तिनाथ मन्दिर विशेष उल्लेखनीय है । इसे 'रेचिमय्य' नामक व्यक्ति ने बनवाकर सन् 1200 के लगभग सागरन दि सिद्धात देव को सौपा था। नवरग के स्तम्भो पर बड़ी सुन्दर व बारीक चित्रकारी की गई है। छतो की खुदाई भी देखने योग्य है । बाहिरी दीवारो पर रेखा चित्रो की खुदाई की गई है। इन पर यक्ष यक्षियो. व तीर्थकरो की प्रतिमाए भी सौदर्य पूर्ण बनी है।
हल्लेबीड में एक ही घेरे के भीतर तीन जैन मन्दिर हैं जिनमें पार्श्वनाथ मन्दिर उल्लेखनीय है। छत की चित्रकारी उत्कृष्ट है जो 12 अति सुन्दर प्राकृतिवाले काले पाषाण के स्तम्भो पर आधारित है । इन स्तम्भो की रचना, खुदाई और सफाई देखने योग्य है। उनकी घुटाई तो ऐसी की गई है कि उसमे आज भी दर्शक दर्पण के समान अपना मुख देख सकता है। पार्श्वनाथ की 12 फुट ऊ ची विशाल मति सतफरणी नाग से युक्त है । मूर्ति मुद्रा सच्चे योगी की ध्यान व शान्ति की छटा को लिये हुए है । शेप दो आदिनाथ व शान्तिनाथ
मन्दिर भी अपना सौदर्य रखते है।