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खुदा हुअा है, जिसके अनुसार इस मूर्ति को प्रतिष्ठा गुप्त स० 106 में (ई० सन् 426, कुमारगुप्त काल) में कार्तिक कृष्णा पंचमी को 'प्राचार्य भद्रान्वयी गोशर्म मुनि" के शिष्य "शकर" द्वारा की गई थी। इन शकर ने अपना जन्मस्थान कुरुदेश बताया है ।
7 चंद्रगिरि गुफा (श्रवण बेल गोल) :
चद्रगिरि पहाड़ी पर यह गुफा स्थित है । सम्राट चंद्र गुप्त मौर्य ने, प्राचार्य भद्रबाहु का शिष्यत्व स्वीकार करने के पश्चात्, साधुवेष मे यहाँ तपस्या की थी।
इस गुफा के समीप एक "भद्रबाहु की गुफा" भी है। कहा जाता है कि यहा श्र तकेवली भद्रबाहु स्वामी ने देहोत्सर्ग किया था। यहाँ इनके चरण-चिह्न अंकित हैं और पूजित होते हैं। दक्षिण भारत में यही सबसे प्राचीन जैन गुफा सिद्ध होती है ।
8 महाराष्ट्र प्रदेश में गुफा-समूह
उस्मानाबाद से पूर्वोत्तर दिशा में लगभग 12 मील की दूरी पर पर्वत मे एक प्राचीन गुफा समूह है इनमें मुख्य गुफा दूसरी है जिसमें पार्श्वनाथ तीर्थकर की भव्य प्रतिमा विराजमान है। तीसरी व चौथी गुफाप्रो मे भी जिनमे प्रतिमाएँ विराजमान है। तीसरी गुफा के स्तम्भों की बनावट कलापूर्ण है ।
बर्जेस साहब के मत से ये गुफाएं अनुमानत: ई० पू० 500-650 के बीच की है।
9 सित्तनवासल (सिद्धानॉवासः)सित्तनवासल जैन मुनियों का एक प्राचीन केद्र पुडुकोटाई से 9 मील दूर स्थान है। यह "सित्तनवासल नाम सिद्धानावासः से अपभ्रष्ट होकर बना प्रतीत होता है । यहाँ के विशाल शिला टीलो में