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(iii) वादिराज
11 वी शती ई. में वादिराज तार्किक होकर उच्चकोटि के कवि थे । उन्हे विद्वत्समाज ने तीन उपाधियो से विभूषित किया था ।
1. षटतर्क षण्मुख
2. स्याद्वादविद्यापति
3 : जगदेकमल्लवादी
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नगर ताल्लुका के शिलालेख नं० 39 में बताया गया है किवह सभा में अकलंक थे ।
"
" प्रतिपादन करने मे 'धर्म कीर्ति थे ।
" बोलने में बृहस्पति थे । न्यायशास्त्र में 'अक्षपाद' थे ।
इन्होंने अकलंक देव के "न्यायविनिश्चय" पर विद्वत्तापूर्ण विवरण लिखा है जो लगभग 2000 श्लोक प्रमाण है। सन् 1025 ई० में इन्होने पार्श्वनाथ चरित रचा जो अत्यन्त सरस और प्रौढ़ रचना है । अन्य भी कई एक ग्रंथ और स्तोत्र इन्होने बनाए हैं । इनके गुरु का नाम मति सागर था ।
(iv) हेमचंद्र
हेमचद्राचार्यं (कलिकाल सर्वज्ञ) सर्वतोमुखी प्रतिभाशाली विद्वान् तथा बहुसृजन ग्रंथकार थे । इतका जीवन काल 1089 - 1172 ई० सन् श्रांका जाता है | चालुक्य नरेश जय सिंह इनका पूर्ण भक्त था । इनके उत्तराधिकारी राजा कुमारपाल के यह गुरु थे । इनके द्वारा रचित व्याकरण ग्रंथो का जिक्र पीछे किया जा चुका है ।
संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश था । उन्होने कोश रचकर अक्षय
भाषाओं पर इनका पूरा आधिपत्य यशकीर्ति अर्जित की तथा अन्य