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उसका पुण्य नाम 'षट खण्डागम' है जो निम्न नामों से भी विख्यात है:
'षट खण्डागम' 1. कर्म प्राभूत या कर्म पाहुड 2. महाकर्म प्राभूत 3. आगम सिद्धात 4. खण्ड सिद्धांत 5. षट खण्ड सिद्धांत
महामुनि भुत बलि और पुष्प दंत वीर निर्वाण की छटी-सप्तमी शताब्दी के मध्य मे रहे । इनके समकालीन 'गुणधर' नाम के प्राचार्य हुए। उन्होने 233 गाथानो में 'कसायपाहुड' या 'कषाय प्रामृत' ग्रंथ की रचना की जिस पर 'यति वृषभ' आचार्य ने 6000 श्लोक प्रमाण 'वृत्तिसूत्र' प्राकृत में रचे ।
उपर्युक्त दोनों महान ग्रंथो पर अनेक टीकाएँ रची गई जो उपलब्ध नहीं हैं। इनके अंतिम टीकाकार 'वीरसेन' आचार्य हुए जो बड़े समर्थ विद्वान थे । उन्होने षट् खण्डागम पर अपनी सुप्रसिद्ध टीका 'धवला' शक सम्वत् 738 में पूरी की जिसकी श्लोक संख्या 72000 है।
दूसरे महान ग्रथ 'कसायपाहुड' पर भी उन्होने टीका लिखनी प्रारम्भ की। उसके यह 20000 श्लोक प्रमाण ही लिख सके कि स्वर्गवासी हुए। इनके कार्य को उनके सुयोग्य शिष्य 'जिनसेन' आचार्य ने 40000 श्लोक और अधिक लिखकर इस गुरुतर कार्य की पूर्ति शक सम्वत् 759 में की। इस टीका का नाम 'जय धवला' है जिसकी कुल श्लोक संख्या 60000 है । उपर्युक्त दोनो ग्रथो की टीकामो की रचना संस्कृत और प्राकृत के सम्मिश्रण से की गई है । बहु-भाग इस का प्राकृत
में है।