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जैन भजन तरंंगनी ।
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चाल - तौहीद का डंका श्रालम में बजवा दिया कमलीवाले ने |
जिन धर्मका डंका आलम में बजवा दिया केवल ज्ञानी ने। करता के मसलेका खंडन कर दिया सार जिनवाणीने १ जब कुंडनपुर में आन लिया अवतार बीर सुखदानी ने | हिंसा की अग्नी शान्त करी महावीर की अमृतवाणीने २ मिथ्यात घटा पाखंड हटा माना हर मतके ज्ञानी ने !
मुख नीचाकर लिया स्यादवाद सुनकर कुरानी पूराणी नं ३ अंगीकार किया जिनमत सुन इन्द्रभूत अभिमानी ने |
शरण बीर ली पत्रके श्री सब वेदों के ज्ञानीने ॥ ४ ॥ सिक्का मान लिया जिनमतका चीन और जापानीने ।
तिब्बत स्याम अनाम और ब्रह्मा नेपाल हिन्दोस्तानीने ५ न्यामत कुफर हुवा गारत मूह ढक लिया कुतव अस्मानीने । शीस झुकाया जैन न्याय आगे पटमत शर्धानी ने |
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जिनेन्द्र भगवान की स्तुति |
जय जिनेन्द्र हित्कार नमस्ते । दुखहारी सुखकार नमस्ते || जय शिवमगनेतार नमस्ते । करम अचल भेतार नमस्ते १ पाप ताप हरतार नमस्ते । जग शान्ती कर्नार नमस्ते || विश्वतत्व ज्ञातार नमस्ते । लोकालोक निहार नमस्ते २
१ पीछे श्रीविद्यानन्द स्वामी नाम रक्सा ।