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जैन भजन तरंगनी ।
नोट--सुपुत्री सितारा देवी के लिये यह भजन ता० २५ दिसम्बर सन १९२३ __ को यनाया था इसमें चखें के सय पुर्जी का हाल दिखलाया गया है और
छोटे बच्चों के लिये बड़ा उपयोगों है ।
नोट--भारत की पुरानी कलों और उनके पुजों के सही नाम याद करने के
लिये इस प्रकार के भजन वशी को जबर याद कराने चाहियेविद्वानों को चाहिये कि अन्य पुरानी कन्नी के ( चक्की-ची भई लोढने की कोल्ह आदि ) भी इस प्रकार के भजन पनाकर यञ्चों को याद कराएँ।
चल मेरा चर्खा चरखचूंढीला ढाला वैठा क्यूं ॥ १ ॥ तीनों खूटे अगली सीम-खड़े युधिष्टर अर्जुन भीम ||२|| पिछले खूटे अपनी धाम-जैसे गिरधारी बलराम ॥३॥ . चर्खे के देखो दो चाक-पंखड़ी नारंगी की फांक ॥४॥ भवन लगा चाकों के बीच-फिरकी दो खूटों के बीच ५॥ जंदनी का पूरा है जाल-ला तेरे गलमें डारूं माल ६ ॥ देखो चरमुख दोनों नार-करमें तकला लिया संभार ७॥ नली दमखड़ा दीना डाल-तकले का बल दिया निकाल ८ चर्खा बैठा पटड़ी साज-जं बैठे दिल्ली का राज । ९ । बेलन को दूं चक्कर चार-पूनी में से निकले तार । १०१ तार चढ़े तकले पर सार-कुकड़ी हो जावे तय्यार । ११ । ऐसा. कातूं सुंदर सूत-देख सब मेरा करतूत.। १२ । वाहरे चर्खा तेरी चाल-भारत को कर दिया निहाल ।१३। न्यामत चखा है हितकार-करता है सबका उपकार । १४ ।