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जैन भजन तरंगनी।
. . २७ वर्ष गुजरे पांच पूरे जर्मनी के जंग में ॥ . आज रण पूरा हुवा ठंडी हवा आने लगी ॥ ४ ॥ मानं जर्मन का घटा इकबाल बिर्टिश का बढ़ा ।। हिन्द में भी बुलबुले शुभ के गीत गाने लगी ।। ५ ।। वाह हैं कैसे बहादुर सारे हरयाने के जाट ! डर गया जर्मन जो जाटों की फौज जाने लगी ।। ६॥ आज कन्या पाठशाला में खुशी क्योंकर न हों। न्यायमत जब हर तरफ सुखकी घटा छाने लगी ।। ७॥
६-स्त्रियों के उपयोगी भजन ।
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मोट-ता० २१ दिसम्बर सन् १९२३ को यह भजन सुपुत्री सितारा देवी
के लिये उसके इम्तिहान के समय बनाया था।
(चाल) हम भी अपने राम की उल्फत में सीता यनगर। वहनो मूरखताई से तुम आप दुखियारों में हो। वनके विद्या हीन और मत हीन नाकारों में हो ॥ १ ॥ हो चुकी सीता दरोपद केकई सी हिंद में।। है बड़ा अफसोस तुम अज्ञान लाचारों में हो ॥ २ ॥ चर्णरज तुमको पुकारें पाओं की जूती कहें। वस अविद्या से सखी तुम सब शरमसारों में हो ॥३॥