SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - (६५). वही है जानने वाले जो निज और परको पहिचाने। . अरेन्यामत बह क्याजाने जो अपने को नहीं जाने । कोई०॥३॥ - - - - - त: ।। जी हम प्राधे हैं दर्शन काज मिटादो प्रभू विथा हमारी जी ॥ . | ऐजी हम दर्श लखो जिनराज घटा चहुं अनंद छाई जी ।। टेक।। नाम प्रताप तिरे अंजन से। कीचकसे अभी मान। नार शिव सुन्दरमिलाईजी॥ एजी०॥१॥ नम स्वरूप छवी बैरागी। नाशा दृष्टि पसार। तिहारी छबि मन मेरे भाई जीएजीना॥ उदय रबी आतम भयो मेरे। मिथ्या तिमिर संहार। लखी जो मैंने छबि बीतराईजीएजी०३ भव बनमें मेरे कर्मन बैरी । हर लिया ज्ञान बिचार। करो ना प्रभू मेरी सहाई जी।एजी०।४। तारण तरण सुनो यश तेरो। न्यामत और निहार। यही है मेरी दुहाई जी ॥ एजी० ॥५॥ . - - - तर्ज | सोरठ अधिक स्वरूप रूप का दिया न जागा मोल ॥ लिया नेम नाथ जिन जन्म मुकुट सुरपति के झुक आये॥टेक॥ बहु विध बाजे बजे.अनाहद ज्योतिष घर जाये। :. | तीन लोकमें शोर हुआं सब सुरगण भरमाए ॥१॥ - - -
SR No.010208
Book TitleJain Bhajan Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy