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(५८) रहम कर जीवों पे बस मत जुल्म पर बांधे कमर ।. क्यों सताता है किसी को चन्द दिनके वास्ते ॥ १ ॥ सच कहो खुद ग़र्ज़ और जालिम है तू याके नहीं। बेजु को मारता अपने मजे के वास्ते ॥ २॥.. काट गल औरों का मांगे खैर अपनी जानकी । . सोच कहां होगा भला तेरा खुदा के वास्ते ॥ ३ ॥ भेट कुर्बानी बलीयज्ञ से ख़ुदा मिलता नहीं। बलके दोजख है खुला इन ज़ालिमों के वास्ते ॥ ४ ॥ पोप मुल्लां की न सुन दिलमें जरा इंसाफ कर। है कहीं अच्छा जुल्म करना किसी के वास्ते ॥ ५ ॥ कर भला होगा भला कलयुग नहीं करजुग है यह । न्यायमत कहता है यह तेरे भले के वास्ते ॥६॥
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तर्ज ॥ पहलू में यार है मुझे उसकी खबर नहीं ॥ . हिंसामें अपने मनको लगाना नहीं अच्छा । करुणा का भाव दिलसे हटाना नहीं अच्छा ॥ टेके ।। यज्ञ और बलीदान खुदगर्जी ने चलाए। कुर्बानि जीव भेट चढ़ाना नहीं अच्छा ॥ १॥ हिंसाके करने से धरम होता नहीं यारो। झूठों के कहने सुनने में आना नहीं अच्छा ॥ २॥ | बोते हों धतूरा नहीं अंगूर मिलेंगे।
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