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(५७) उनको दोष ना दीजिये कर्मन की तकप्तीर ।। करम में यूंही लिखा था.हमारो रे। सेना० ॥१॥ जो तू उलटा जाय तो इतनी दियो सुनायं । । भा मंडल भनी कहीं चरणन शीस नमाय ॥ .. . मेरा दुख मत करियो पती म्हारो रे ॥ सेना० ॥२॥ जगत बात सुन मैं तजी कियो ना नेक बिचार। सुनकर निन्दा धर्म की मत तजियो भरतार ॥ . . धरम बिन कोई नहीं हितकारो रे ।। सेना० ॥.३ ॥ . क्यों जिन दर्शन की कही. झूठी बात बनाय। जो मनमें ऐसी बसी क्यों नहीं दी दर्शाय ॥ . मेरे मन यह.दुख है अति भारो रे । सेना० ॥ ४॥ . | छोड़ा थारे देशको छोड़ दिया घरबार ।
राम लखन सूबस बसो बसो नगर परिवार ॥ बिपति में कोई नहीं सुख कारो रे ।। सेना० ॥५॥ | क्यों रोवे सेनापती मनमें धारो धीर। कर्म लिखा सो होयगा लाख करो तदबीर ॥ करम नहीं टरे न्यायमत टारो रे । सेना० ॥ ६॥
८३ . तर्ज ॥ कत्ल मत करना मुझे तेगा तवर ले देखना ॥ . . | जुल्म करना छोड़दो साहिब खुदा के वास्ते । जुल्म अच्छा है नहीं करना किसी के वास्ते ॥ टेक ॥
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