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अब शुभघड़ी आई, सखी जिन धर्म गह्यो। जिनबाणी मनभाई, मनको भरम गयो। न्यामत मनको मनाले, अपने में चितलाले, अपने ही गुणगाले फिरे क्यों भवभव में भटका ॥ कहो ॥५॥
७३ .. तर्ज ॥ आज तपोवन जाएंगे महाबीर जिनन्दा ॥ (हमीर) क्यों जगजालमें आएजी छोड़ो छोड़ो जी धंदा ॥ क्यों० टेक शील और व्रत तप संजम कांजे। मानुष नरभव पाएजी॥ छोड़ो० ॥ १॥ . . . क्रोध मान माया लोभ निवारो। . . . . . . . . . . सुरनर सब शिरनाएजी॥ छोड़ो० ॥२॥ मात पिता सुत नार सुहेली। . ... अंत को काम ना आएजी।। छोड़ो० ॥३॥...... न्यामत अष्ट कर्म फंद काटो। जिन भक्ती चितलाएजी ॥ छोड़ो ॥४॥
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तर्ज | चोला । अल्लादिया की चाल में (जो पार को तरफ गाए जाते हैं।
(यह भजन अठाई के पर्व में पढ़ा जाता है) . . .... दोहा । ... आज उत्सव तिहुलोक में, सुरनर मन हर्षाय । नंदीश्वर बंदन. गये, लेले द्रव्य अथाय ॥ १ ॥