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मान अधीर ले उड़ायो, इत्र कपट लगायो
मिथ्या मारग दिखायो, बुझा दिया ज्ञान दीप घटका || कहो ० १ ॥ माया रंग में भिगोई, सगरी ही सुधिखोई,
करछल मनमोही, बात तत्वों की बिगोई । देखो ऐमी बाला जोरी, निश्चय तोरी पोरी पोरी ॥ काहू देखी ऐसी होरी, मोहे कर देई बोरी ।
भर मोह पिचकारी, आशा तृष्णा फुलवारी, ऐसे तक तक मारी, ध्यान आरसी का दर्पण चटका || कहो० ॥२॥
मोह को दियो है डाल, कुछ ऐसो इन्दर जाल ।
जान पड़े कहूं नहीं, हित अनहित हाल । तोड़ दिये ग्यारह अरु बारा व्रत माला हार || नेमकी चुनरिया के, कर दिये तार तार ।
त्याग संजम बिंदी बैना, रत्न त्रयं लटकैना, दशलक्षण व्रत गहना, ज्ञान मोतियन काहार झटका || कहो ० ॥३॥ छीन सत हथफूल, नथशील की निकाली,
खोई चरचा चम्पाकली, खींची दया कानवाली ।
मांग क्षमा दीनी खोल, लड़ी विनय की निकाल || बाजुबंद तपतोड़, माया गलहार डाल । धर्म जोबन लुटाया, खटकर्म मिटाया,
समभाव हटाया, सखी नकों में जा पटका || कहो० ॥ ४ ॥ कर्मों ने देखो सखी, कैसे कैसे दुख दिये । भगवत जाने हम से तो नाहीं जायं कहे ॥