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(३१) सुख नहीं पाते हैं वह भी जी सताके देखलो ॥२॥ न्यायमत हिंसा का फल अच्छा कभी होता नहीं। आगई भारत पे आफत आँख उठाके देखलो ॥३॥
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तर्ज || याद आवेगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे वाद ॥ आशना काम न आवेगा कोई मेरे बाद। काफला सारा बिछड़ जावेगा बस मेरे बाद ॥ १ ॥ जब तलक मैं हूं तो हैं यार संगाती तरे । फिर कोई पास भी आवेगा नहीं मेरे बाद ॥ २ ॥ है यकी मुझको कि अग्नी में जला देंगे तुझे। घर में रहने तुझे देगा न कोई मेरे बाद ॥ ३॥ न्यायमत कहदे यह काया से कि जप तप करले । वरना फिर खाक में मिल जावेगी तू मेरे बाद ।। ४ ॥
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तर्ज ॥ पहलू में यार है मुझे उसकी खबर नहीं।
(शिव सुन्दरी अपने मनमें विचार करती है ) मिलना मेरा चेतन से अब आता नजर नहीं। किस देश में वह है मुझे उसकी खबर नहीं ॥ टेक ॥' किस तौर से चेतन को कुमति फंद से लाऊं। मैं मोक्ष बंध में मेरा होता गुजर नहीं ॥ १ ॥ जिन राज जगत लाज तू मेरी सहाई कर। चेतन बिना जीको मेरे आता सबर नहीं ॥ २ ॥
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