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(३०) न्यामत सुधरे बिगड़ी सारी ॥ दुख० ॥ .
१४. तर्ज ॥ रघुबर कौशल्या के लाल मुनी की यज्ञ रचाने वाले ॥ | रावण सुनो सुमति हियधार सती सीता के चुराने वाले। सीता के चुराने वाले कुल के दाग लगानेवाले ।। रावण०। टेक । राणी थीं दश आठ हजार । लाया क्यों हर कर पर नार॥ तजकर धर्म सकल सुखकार। शीलकी बाड़ हटानेवालेरावण०१॥ जो तुझे थी सीता से प्रीत । लाया क्यों नहीं स्वयम्बर जीत ।। यह थी क्षत्रीपन की रीत । क्षत्री नाम लजानेवाले ।। रावण०२|| जो सीता लीनी थी ठान । लाया क्यों नहीं सन्मुख आन ॥ तुमतो थे जोधा बलवान । गिर कैलास हिलानेवाले ॥रावण ०३ जाकर दंडक बनके बीच । सूनी लाए सती को खींच ।। कीना काम नीच से नीच । बनेनों में जाने वाले॥रावण०४ होना था सो होगया खैर । उलटी देदो सीता फेर। अच्छा नहीं रामसे बैर । न्यामत कहते कहनेवाले ॥रावण०॥५॥
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तर्ज ॥ फल मत करना सुझे तेगो तवर से देखना । है नहीं कलयुग यह है करजुग समझ के देखलो। . जसौ जो करता है फल पाता है करके देखलो ।। टेक ॥ . जो दया करते हैं औरों पे वही पाते हैं चैन । दुक्ख सागर में पड़े पापी पापकर देखलो ॥ १ ।। अपने जीने के लिये जो और का काटें गला ।
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