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( २१ ) तुम्हें जो नैनें भर देखे गती दुर्गत की टरती है || ३ || हज़ारों मूरतें हमने बहुत सा गौरकर देखी । शांत मूरत तुम्हारी सी नहीं नज़रों में चढ़ती है ॥ ४ ॥ झुकाते हैं जो सर चरणों में उनके फूल बर माला । गले में सुन्दरी शिवनार के हाथों से पढ़ती है ॥ ५ ॥ . जगत सरताज हे जिनराज न्यामत को दरश दीजे । तुम्हारा क्या बिगड़ता है मेरी बिगड़ी संवरती है ॥ ६ ॥
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तर्ज || आज श्राली श्रीमती जननी सुत जायारी ॥
आज जिन चरण शरण मन लायो जी ॥ टेक ॥।
तुम भव तारक कलमल हारक । मुनि जन गण गुण गायो जी || आज० ॥ १ ॥ शिव मग नेता अघगिरि भेता ।
सब ज्ञेय ज्ञान उपायो जी ॥ आज० ॥ २ ॥ अब मैं नरभव का फल पायो । समकित मेरे मन आयो जी ॥ आज० ॥ ३ ॥
जनम जनम की तृष्णा भागी । किल्विष कलुष नशायो जी ॥ आज० ॥ ४ ॥ - जिन जन भक्ती घरी चित तेरी | छिन में आप अपनायो जी ॥ आज० ॥ ५ ॥ न्यामत जिन सन्मुख सुख देखा । विमुख भए दुख पायो जी || आज० ॥ ६ ॥