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(११) मेघ सुधाक हो बरसे हम बहु आनन्द पाए ॥१॥ यही भई पस्तीत मेरे तुम देवन के देवा । जनम जनम के अघकट गए मेरे तुम दर्शन पाए ॥२॥ नारद ब्रह्मा और सभी मिल तुमरे गुण गाए । नरपति सुरपति नित तुम ध्यावे बंछित फल पाए ॥३॥ इन्द्र धनेन्द्र सभी मिल आए सिर चरणन लाए। न्यामत जनम सुफल कर मानों तुम दर्शन पाए ॥४॥
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तर्ज ॥ इताजे दर्द दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता ॥ प्रभू की भक्ति काफी है शिवा सुन्दर मिलाने को ॥ टेक ।। छुड़ा दामन कुमत से जो तू शिव सुन्दर को चाहे है। तुझे आई है अय चेतन सखी सुमता बुलाने को ॥ १ ॥ जगामत मोह राजा का पड़ा है ख्वाब गालत में। बनाले ध्यान की नवका भवोदधि पार जाने को ॥ २॥ तुझे अय न्यायमत कोई अगर रहबर नहीं मिलता। तो ले चल संग जिन बाणी तुझे रस्ता बताने को ॥३॥
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तर्जा खातीका खूनला तेरी मामी लागरे । चरखा तु घड़दे राँगलोरे खूवा
पीढी लाल गुलाल, खातीका खूरला (यह गोत हरयानेमें जमीदार गाते हैं) ज्ञानीरा चेतना पर नारी त्यागोरे ॥ टेक । या पर नारी देखतारे मरो धवल सेठ गँवार ज्ञानी० ॥१॥ या पर नारी बांछतारे परी कीचक मार अपार ज्ञानी० ॥२॥
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