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- प्रथम ऋषभ जिन स्तवन ।
(ऐसे गुरु किम पावियै एदेशी). बन्दु बे कर जोड़ने, जुग पादि जिनन्दा। कर्म रिपु गज उपरै, मृगराज मुनिन्दा ॥ प्रणम् प्रथम जिनन्द मे, जय जय जिन चन्दा ॥ ए आंकड़ी ॥१॥ मनुकूल प्रतिकूल सम सही, तप विविध तपिन्दा। चेतन तनु भिन्न लेखवी, ध्यान शुक्ल ध्यावंदा ॥२॥ पुद्गल सुख भरि पेखिया, दुःख हेतु भयाला। विरक्त चित बिगट्यो दूसो, नाण्या प्रत्यक्ष जाला ॥३॥ संवेग सरवर झूलतां, उपशम रस लौना । निन्दा स्तुति सुख दुःखे, सम भाव सुचौना ॥ ४॥ बांसी चन्दन सम पणे, थिर चित जिन ध्याया। इम तन सार तजी करी, प्रभु केवल पाया ॥५॥ई बलिहारी तांहरी, वाह वाह जिनराया। उवा दशा किण दिन पावसौ, मुझ मन उमाया ॥ ६ ॥ उगणीसै सुदि भाद्रवे दशमी दौतवारं । ऋषभदेव रटवे करी, हुमो हर्ष अपारं॥७॥
श्री अजित जिन स्तवन । .
(अहो प्रिय तुम वट पाडी पदेशी) पहो प्रभु यजित जिनेश्वर भापरो, ध्याउं ध्यान हमेश हो। अहो प्रभु अशरण शरना तूंही सही, मेटग