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॥श्री चौबीस जिन स्तुति प्रारम्भः॥
॥दोहा॥.... ॐ नमः अरिहन्त अतनु, आचार्य उवझाय। . स्मुनि पञ्च परमेष्टि ए, ॐकार रै मांहि ॥ १ ॥ ..... बलि प्रगामुगुणवन्त गुरु, भिक्ष भरत महार। . दान दया न्याय, छागाने, लौधो सारग सार ॥ २॥ भारीमाल पट भलकता, तोजे पट ऋषिराय। प्रणमु मन वच काय करी, पांचु अङ्ग नमाय ॥ ३ ॥ इम सिद्ध साधु प्रणमी करी, ऋषभादिक चौवोस । स्तवन करूं प्रमोद कगे, जय जश कर जगदीश ॥४॥ मल्लि नेम ए दोय जिन, प्राणौ ग्रहण न कोध। . शेष बावीस जिनेश्वर, रमण छांड़ ब्रत लौध ॥ ५ ॥ बासुपूज्य मल्लिनेम जिन, पारस अने वर्द्धमान ।। कुमर पदै अरु प्रथम वय, धाखो चरया निधान ॥६॥ छत्रपति उगणोस जिन, ब्रत तौजी वय सार। उत्कृष्ट आयु जिह समय, तमु चिगा भाग विचार ॥७॥