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का विस्तार पूर्वक विवेचन कर लेखक ने भारतीय समाजदर्शन पर व्यक्तिवादिता के किसी आरोप का स्थान नहीं रहने दिया है । इस प्रकार सामाजिक चेतना से सामाजिक दायित्व तक सम्पूर्ण सामाजिक परिधि का निरूपण बड़ी सरलता एवं सजीवता के साथ किया गया है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ दर्शनशास्त्र के उन स्नातकोत्तर विद्यार्थियों, शोत्र छात्रों, विद्वानों एवं जिज्ञासुओं के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगा, जो भारतीय समाज दर्शन का अध्ययन करते हैं या उसमें रुचि रखते हैं। इस प्रकार के उच्चस्तरीय शोध पर आधारित प्रामाणिक ग्रन्थ का प्रणयन कर डॉ० सागरमल जैन ने भारतीय ममाजदर्शन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इसके लिए सहृदय एवं विचारशील दार्शनिक समुदाय उनका हृदय से आभारी होगा ।
डा० रघुनाथ गिरि
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष दर्शन विभाग संकायाध्यक्ष, मानविकी संकाय, काशी विद्यापीठ वाराणसी