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स्वहित बनाम लोकहित
हो ऐसा जग में, दुःख से विचले न कोई, वेदनार्थ हिले न कोई, पाप कर्म करे न कोई, अमन्मार्ग धरे न कोई, हो मभी सुखशील, पुण्याचार धर्मवती, मबका ही परम कल्याण, मवका ही परम कल्याण ।'
१. शिक्षासमुच्चय-पृ. १. अनुदित धर्मदूत, मई १९४१