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न, बोर और गीता का समापन नपर्म में सामाजिक जीवन के निष्ठा सूत्र १. सभी मात्माएं स्वरूपतः समान है, अतः सामाजिक जीवन में ऊंच-नीच के वर्ग-भेद .खड़े मत करो।
-उत्तराध्ययन १२॥३७. २. सभी आत्माएं समान रूप से सुखाभिलाषी है, अतः दूसरे के हितों का हनन, शोषण
या अपहरण करने का अधिकार किसी को नहीं है। आचारांग १।२।३।३. ३. सबके साथ वैसा व्यवहार करो, जैसा तुम उनसे स्वयं के प्रति चाहते हो ।
-समणसुत्तं २४. ४. संसार के सभी प्राणियों के साथ मैत्री भाव रखो, किसी से भी घुणा एवं विद्वेष मत रखो।
-समणसुतं ८६ ५. गृणीजनों के प्रति आदर-भाव और दुष्टजनों के प्रति उपेक्षा-भाव (तटस्थ-वृत्ति)
-सामायिक पाठ १ ६. संसार में जो दुःखी एवं पीड़ित जन हैं, उनके प्रति करुणा और वात्सल्यभाव रखो
और अपनी स्थिति के अनुरूप उन्हें सेवा-सहयोग प्रदान करो। बनधर्म में सामाजिक जीवन के व्यवहार सूत्र
उपासकदशांगसूत्र, योगशास्त्र एवं रत्नकरण्ड श्रावकाचार में वर्णित श्रावक के गुणों, बारह व्रतों एवं उनके अतिचारों से निम्न सामाजिक आचारनियम फलित होते हैं:१. किसी निर्दोष प्राणी को बन्दी मत बनाओ अर्थात् सामान्य जनों की स्वतन्त्रता में
बाधक मत बनो। २. किसी का वध या अंगछेद मत करो, किसी से भी मर्यादा से अधिक काम मत लो,
किसी पर शक्ति से अधिक बोझ मत लादो। ३. किसी की आजीविका में बाधक मत बनो । ४. पारस्परिक विश्वास को भंग मत करो । न तो किसी की अमानत हड़प जाओ और
न किसी के गुप्त रहस्य को प्रकट करो। ५. सामाजिक जीवन में गलत सलाह मत दो, अफवाहें मत फैलाओ और दूसरों के
चरित्र-हनन का प्रयास मत करो। ६. अपने स्वार्थ की सिद्धि-हेतु असत्य घोषणा मत करो। ७. न तो स्वयं चोरी करो, न चोर को सहयोग दो मोर न चोरी का माल खरीदो। ८. व्यवसाय के क्षेत्र में नाप-तौल में प्रामाणिकता रखो और वस्तुओं में मिलावट
मत करो। ९. राजकीय नियमों का उल्लंघन और राज्य के करों का अपवंचन मत करो। १०. अपने यौन सम्बन्धों में अनैतिक आचरण मत करो। वेश्या-संसर्ग, वेश्या-वृत्ति
एवं उसके द्वारा धन का पर्जन मत करो।