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________________ सम्यक् तप तथा योग-मार्ग १०५ आहार लेना यह काल-ऊनोदरी तप है। ४. भिक्षा-प्राप्ति के लिए या आहार के लिए किसी शर्त (अभिग्रह) का निश्चय कर लेना, यह भाव-ऊनोदरीतप है । संक्षेप मे ऊनोदरी तप वह है जिसमें किसी विशेष समय एवं स्थान पर, विशेष प्रकार से उपलब्ध आहार को अपनी आहार की मात्रा से कम मात्रा मे ग्रहण किया जाता है । मूलाचार के अनुसार ऊनोदरी तप की आवश्यकता निद्रा एवं इन्द्रियों के संयम के लिए तथा तप एवं पट् आवश्यकों के पालन के लिए है।' ३. रस-परित्याग-भोजन में दूध, दही, घृत, तैल, मिष्ठान्न आदि सबका या उनमे से किसी एक का ग्रहण न करना रस-परित्याग तप है । रस-परित्याग स्वाद-जय है । नैतिक जीवन की साधना के लिए स्वाद-जय आवश्यक है । महात्मा गांधी ने ग्यारह प्रतों का विधान किया, उसमे अस्वाद भी एक व्रत है। रस-परित्याग का तात्पर्य यह है कि माधक स्वाद के लिए नही, वरन् शरीर-निर्वाह अथवा साधना के लिए आहार करता है। ४. भिक्षाचर्या-भिक्षा-विषयक विभिन्न विधि-नियमों का पालन करते हुए भिक्षान्न पर जीवन यापन करना भिक्षाचर्या तप है। इसे वृत्तिपरिसंख्यान भी कहा गया है। इसका बहुत कुछ सम्बन्ध भिक्षुक जीवन से है । भिक्षा के सम्बन्ध मे पूर्व निश्चय कर लेना और तदनुकूल ही भिक्षा ग्रहण करना वृतिपरिमख्यान है । इमे अभिग्रह तप भी कहा गया है। ५ कायक्लेश-वीरासन, गोदुहामन आदि विभिन्न आसन करना, शीत या उष्णता सहन करने का अभ्याम करना कायक्लेश तप है। कायक्लेश तप चार प्रकार का है१. आमन, २. आतापना--सूर्य को रश्मियो का ताप लेना, गीत को सहन करना एवं अल्पवन्न अथवा निर्वस्त्र रहना । ३. विभपा का त्याग, ४. परिकर्म-शरीर की साज सज्जा का त्याग । ६. संलोनता-मलीनता चार प्रकार की है-. इन्द्रिय मलीनता-इन्द्रियों के विपयो म वचना, २. कपाय-मलीनता- क्रोध, मान, माया और लोभ में बचना, ३. योग सलीनता-मन, वाणी और शरीर को प्रवृत्तियो से बचना, ४. विविक्त शयनासनएकात स्थान पर मोना-बैठना । मामान्य रूप में यह माना गया है कि कपाय एवं रागद्वेष के वाह्य निमित्तों से बचने के लिये माधक को श्मशान, शून्यागार और वन के एकान्त स्थानों में रहना चाहिए । आभ्यन्तर तप के भेद आभ्यन्तर तप को मामान्य जनता तप के रूप में नही जानती है, फिर भी उसमे १. मुलाचार, ५।१५३ २. उत्तराध्ययन, ३०१२९-३६
SR No.010202
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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