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जैनबालगुटका प्रथम भाग। अर्थ- अशोक वृक्षका होना जिस कं देखने से शोक नष्ट होजाय, सरल भय सिंहासन ३ भगवान् के सिर पर तीन छत्र का फिरना, ४ भगवान के पीछे मामंडल का होना ५ भगवान के मुख से निरक्षरी दिव्यध्वनि का होना, देवों कर पुष्प वृष्टि का होना, यक्ष,देवों कर चौंसठ चवरों का ढोलना, ८ दुन्दुभी बाजों का बजना यह ८ प्रातिहार्य हैं।
समवशरन की १२ सभा। समवशरण में गंधकुटी के हर तरफ गोलाकर प्रदक्षिणा रूप १२ सभा होय हैं। १-पहली सभा में गणधर और अन्य मुनि विराजे हैं। २-दूसरी सभा में कल्पवासी देवों की देवी तिष्ठे हैं। ३-तीसरी सभा में आर्यिका और श्राविकायें निष्ठे हैं। ४-चौथी सभामें ज्योतिषी देवों की देवी तिष्ठे हैं। ५-पांचवी सभा में व्यंतर देवों की दवी तिष्ठे हैं। ६-छठी सभा में भवनवासी देवों की देवी तिष्ठे हैं। .. ७-सातवीं सभा में १० प्रकार के भवनवासी देव तिष्ठे हैं। ८-आठवीं सभा में प्रकार के व्यंतर देव विष्ठे हैं। ९ नवमी सभा में चन्द्र स्थादि विमानों में रहने वाले ५ प्रकार । के ज्योतिषी देव तिष्ठे हैं। १०-दशा सभा में १६ स्वर्गों के वासी इन्द्र और देव तिष्ठेह। ११-ग्यारवी सभा में मनुष्य तिष्ठे हैं। १२-धारहवीं सभा में पशु, पक्षी, और तिर्यंच तिष्ठे हैं ।
___ नोट-समवशरण में इन का आना जाना लगा रहता है कोई आवे है, कोई जावे है कोई धर्मोपदेश सुने है समवशरण का यह अतिशय है । कि समवशरण में रात दिन का भेद नहीं हर वक्त दिन ही रहे है रात्री नहीं होती और कितने ही देव मनुष्य आजा परन्तु समवशरण में सब समाजाते हैं जगह कामभाव कमी भी नहीं