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आचार्य चरितावली
गच्छों की उत्पत्ति व विशेषता
परिणमा (पूनमिया) गच्छ – मुनि चन्द्रसूरि के गुरु भ्राता चन्द्र प्रभ ने स० ११५६ मे पूर्णिमा मत प्रकट, किया। चवदस की पक्खी के स्थान पर इन्होने पूनम को पक्खी करना प्रचलित किया। इस पर मुनि चन्द्रमूरि ने पाक्षिक सूत्र द्वारा इस मत के अनुयायियो को समझाने का प्रयत्न किया।
खरतर गच्छ की उत्पत्ति.-जिनेश्वर सूरि के शिष्य जिनवल्लभ बड़े विद्वान् और प्रतिभाशाली थे । कहा जाता है कि जिनेश्वर चैत्यवासी हो
गये।
जिन वल्लभ ने एक दिन दशवकालिक सूत्र का स्वाध्याय करते समय साधु का आचार जानकर गुरु से पूछा-“भगवन् ! अपने प्राचार और शास्त्र के वचन मे तो फर्क है।"
गुरु ने अपनी कमजोरी वतलाई।
जिन वल्लभ ने सत्य जानने हेतु अभय देव सूरि के पास जाकर शास्त्र का अध्ययन किया और पूर्ण गीतार्थ हो गये।
पट्टावली के अनुसार सं० १२०४ मे जिनदत्त सूरि से खरतर गच्छ की स्थापना कही जाती है, परन्तु प्रभावक चरित्र मे कूर्चपुर गच्छीय जिनेश्वर सूरि को मुनि चैत्यवास को शास्त्रार्थ में पराजित करने वाला कहा गया है। उनके अनुसार दुर्लभराज की सभा मे चैत्यवास के साथ वाद-विवाद मे उनकी विजय होने से दुर्लभराज ने कहा-"ये खरे है अर्थात् खरतर कठोर करणी करने वाले है।"
तब से जिनेश्वर सूरि और उनकी परम्परा खरतर गच्छीय कही जाने लगी।
इस समय मेटपाट (मेवाड) आदि मे चैत्यवास का विशेष जोर था। इसलिये उन्होने उस प्रान्त की ओर विहार किया। जिनेश्वर के बाद इनके शिप्य जिनवल्लभ हुए। ये चैत्यवास के कट्टर विरोधी थे। सवत्